Saturday 26 November 2011

but moon is alone in the sky


the sky is blue ,
and moon alonein the sky ,
stars are moving around it
but moon is alone in the sky….
 stars are twinkling ,
and close and open their eyes,
sky looks like blue sea ,
but  moon is alone in the sky…
the stars want to play with moon ,
they are try to make laugh to moon,
and they want that moon be happy ,
but moon feel alone in the sky….
stars look like lighten candle ,
and the sky look llike a temple,
but moon find the god and
moon is not happy…
 sky is looking like silent sea side ,
it give peace to people,
the child is happy to see the moon,
now moon is also happy ,
 bcoz of child smile,
now moon got the god ,
in the face of child…………



Wednesday 23 November 2011

फूलों सी जिदंगी






काश ये जिदंगी सी फूलों सी बन पाती,
दूसरों को खुश्बू देकर महक पाती।
अपने लिए ना कोई चाह,ना कोई अरमान ,
दूसरों के नित होता है,उसका स्वाभिमान।
काश हम भी एक फूल की तरह जी पाते,
निज का स्वार्थ तज,दूसरों का हित कर पाते।
इन फूलों की क्या भी क्या जिंदगानी होती है,
हर एक जर्रा भी उनका उनसे बेगानी होती है।
तितलियों के लिए रंग ,भौरों को रस,
अर्थी हो या भगवान की मूरत ,दोनों के लिए है उसकी एक  ही सूरत
 किसी भी बात पर  ना गुमान ना अभिमान,
ना ही कोई खुशी ना ही रोष है
सब कुछ सह कर भी रहता खामोश।
काश हम ही इन फूलों की तरह रह पाते,
हर जगह बस अपने प्यार की खुश्बू बिखेरते जाते।

Wednesday 12 October 2011


आज की रात बड़ी रूसवाई की है,
दो इश्के बफा की जुदाई की है।
 ये रात इस जॅहा से नजर चुरा रही है ,
दो इश्क के बांशिदोे पर कहर ढा रही है,
हर बीते लम्हे की यादे जहन में बस गई है।
मानो उन यादों से दिल की दुनिया झुलस रही हो।
कैसे भूल पाऐंगें वो लम्हे जो गुजारे साथ में ,
वादे किये जो उनसे ,हाथो को रख हाथ में ।
अब तो हर बात ,हर सांस में उनकी खुश्बू समाई है,
हर गुजरते लम्हे ने उसी की आश लगाई है।
दर्दे हिजरा लिये दिल यही पूछ रहा है,
ऐ खुदा बता ये तेरी कैसी खुदाई है।
इस दिल ने भी ना जाने,कैसी हसरत की है,
कैसे भूलेंगें उन्हे ,जिसकी इस दिल ने इबादत की है।
 बनकर बुत उनकी यादों को दफन कर लूंगी ,
सामा(सामान)समझ खुद को ,अजनबी के समन कर लूंगी।
ऐ खुदा मुझ पर तू इतनी रहम कर दे,
वो भूल जाए इस नाचीज को,इतना करम कर दें।
ये रात जिंदगी का,ऐसा फसाना बनेगी,
जिसे चाह कर भी जुबा दोहरा ना सकेगी ।
ना करना इस जिंदगी मे रूबरू उनसे ,खुदा,
ये नजर  उस नजर का तारूख ना कर सकेगी।

आज माँ को मैने जाना है जाना है






 
माँ तेरी कमी आज मुझे रूला रही है ,
दिल की गहराई से तुझे बुला रही है।
आज याद आ रहा है तेरा मुझे सहलाना
वो मेरी उदासी में मुझको बहलाना।
                                     हर एक पल मुझे ,तेरी याद दिला रहा है,
                                    और तेरे क्या है जीना ,मुझको अहसास करा रहा है।
                                    रोज शाम को मैस की रोटी ,जब थाली में आती है ,
                                     तब तेरे हाथो की बाटी,तेरी याद दिलाती है ।
घर पर तो खाना खाने में ,मै नखरे खूब बताती थी
और थोड़ा भी ठंड़ा खाना हो ,तो लाख बहाने गाती थी ।
तेरी छुई मुई सी बेटी ,अब पत्थर बन गई है मॉ,
और घर में कुछ ना करने वाली,अब सब कुछ कर रही है मॉ।
                                      घर में जब तू संग रहती थी ,तुझसे हर काम को कहती थी,
लड़ती थी झगड़ती थी और मन मर्जी से सब करती थी ।
जब परिक्षाऐं मेरी आती थी ,मै पढ़ते पढ़ते सो जाती थी ,
 

और रात को फिर हौले से तुम ,मेरी पुस्तक बंद कर जाती थी ।
अब भी पढ़ते पढते मै माँॅ
पुस्तक खोल के सोती हू,
जब नींद खुली मेरी तो फिर मैं, खुद ही पुस्तक बंद कर लेती हूॅ।              
जब तक तेरे साथ थी मै माँ ,तुझको जान पाई थी,
और तू कितनी प्यारी है माँ ,इसको पहचान ना पाई थी,
तुझसे दूर रहकर के मॉ ,तेरे साथ को जाना है,
और तेरे साये का सुख क्या है? अब मैने पहचाना है।



Tuesday 27 September 2011

बारिश की बूंदे



बारिश की बूंदे कितनी प्यारी होती है,
जैसे किसी बगिया में बयारे होती है ।
हर किसी की अपनी अलग कहानी होती है,
किसी के लिए खुशियों का अहसास ,तो  किसी के लिए यादों के पैमाने होते है।
 
किसी बच्चे की मासूम ख्वाहिश होती है ,
तो जवा दिलों कि ये हसरत होती है ।
किसी बूढ़े के बीते दिनों कि याद होती है
और हर किसी के लिए इसकी अपनी कायनात होती है।
वैसे तो बारिश की बूंदे धरती पे नीर गिराती है ,
पर कही कही ये बूंदे मन में एक मीठा सा पीर दे जाती है।
धरती गीली,,मिट्टी सौंधी,पेडों में रस भर जाती है
बड़ा सुहाना लगता है ,जब बगिया प्यारी खिल जाती है।
कुछ भी मानो कुछ भी जानो ये बारिश बड़ी निराली है ,
पल मे शोला,पल मे शबनम, दिल को करने वाली है ।
ठहरे हुए मन में भी हलचल मचा देती है ,
कुछ भी कह दो पर ये बारिश तो बड़ा सुकू देती है।
 

Tuesday 20 September 2011

जिंदगी से आज मेरी,मुलाकात हो गई ,



जिंदगी से आज मेरी,मुलाकात हो गई ,
कुछ देर बाते राहो में ,उसके साथ हो गई।
कुछ अटपटी, तो कुछ सीधी सी बात हुई ,
कुछ हैरानी, तो कुछ मुस्कुराहटे लाती हुई ।
कभी ये पहेली ,कभी सुलझी सी चकोर लगती है,
कभी जैसे पतंग में, उलझी हुई ड़ोर लगती है। 

कभी धूप कभी छाव ,हर रंग अपने दिखा दिये 
कभी पल में खुशिया तो कभी,दुनिया के सारे रंग दिखा दिये ।        
किसी से कुछ ना चाहो, इसी में सबसें बडी खुशी है ,
दूसरो को हसीं देना ही ,यही जिंदगी है
हर पल को अनमोल बनाने का ,फलसफा सिखा गई ,

एक छोटी सी मुलाकात में जीने का सलिका बता गई।
 


Sunday 18 September 2011

जाने क्यों ,आज दिन गुम सा है,

जाने क्यों ,आज दिन गुम सा है,
जुबा से कहकर भी ,अंदर गुमसुम सा है।
सब कुछ जानकर भी, बन रहा अनजान है,
जाने क्यों ये दिल, इतना नादान है ।
आज दिल की उलझन ,क्यों बढ़ रही है,
माथे की भौ जाने, क्यों चढ़ रही है ं
बिन बात के ये ,जाने क्यों रूठा बैठा है,
मनाकर हार गए ,पर यू ही ऐठा बैठा है।
एक याद है या यादों का जहान,
सब है मगर ,फिर कुछ पाने का अरमान है।
 भरी महफिल में भी, तनहा कर रहा है,
जने किस बात पे ये ,इतना ड़र रहा है।
किसी की यादों को ,दिल से जोड़ रहा है
वो पास है फिर भी ,उसे पाने को दौड़ रहा है।
जाने क्यों आज से ज्यादा ,बीते पल की याद को संजो रखा है ,
समझ नही आता,
इन बीते पल की ,यादों में क्या रखा है।
लाख पूछने पर भी ,करता यही बयान हैं
कि बस ये समझ लो ,इन यादों से मेरी पहचान है।
जाने क्यों ये दिल ,इन यादों के मरहूम हो गया है,
इन यादोें से ही शायद ये दिल आज गुमसुम हो गया है।

Wednesday 14 September 2011

चाँद की हसरत


उस चाँद को देखकर भी ,ये ऐहसास होता है ,
कि वो हमसे दूर रहकर भी ,
हमारे पास हमारे पास होता है।
खुद तो   चाँदनी के बिन ,कितना उदास होता है ,
पर दो दिलो को मिलाने की, लिये आस होता है ।
दर्द जानता है ,वो जुदाई का
  क्या होता है, आलम तन्हाई का ।
                         चाँदनी से मिलने की, जब प्यास होती है,
   पर उस मिलन पर भी, कयास होती है।
कैसे गुजरती है ,वो तन्हाई की रातें ,
जब चाँदनी से उसकी ,नही होती है बातें ।
उस चाँदनी की भी, ये बेवसी होती है
और  चाँद की चाह में ही, सारी जिंदगी होती है।

   चाँद की चाहत में ,ना बेवफाई  है,
  हर किसी की चाहत की ,यही रूसवाई है।
जब इस चाहत की, दूरियाँ सिमटी है ,
तब इस जहॉ से तिमिर की ,छाया मिटी है ।
चाहत से हमेशा ,जहॉ मे रोशनी हुई है,
सच्ची चाहत की हर मोड़ पर ,आजमाइस हुई है।
इसलिए चाँद आज भी, चाँदनी के लिए रोता है ,
और बिन चाँदनी के वो, हमेशा अधूरा होता है।

Thursday 8 September 2011

वक्त

वक्त,सुनकर ही दिल थम सा जाता है,   
ना जाने अगला लम्हा कहॉ को जाता है।
                      हर कोई इस वक्त के पीछे भागता है,
वक्त पे सोता और वक्त पे जागता है।
हर कदम कदम में इस वक्त की ऐतियात है,
क्योंकि कहते है किस्मत बदलना ,वक्त वक्त की बात है।
क्या कभी ये वक्त किसी के आगे झुका है,
और ,कम्बख्त वक्त कहॉ किसी के लिए रूका है।
जो वक्त रहते, इस वक्त का हमदम हो गया ,
समझो कामयाब वो, हरकदम हो गया।
                       और जिसने  भी इस वक्त की कद्र ना किया है ,
                        इस वक्त ने भी उसको बेकद्र किया है।
किसी का साथ मिलना ,और बिछड़ना भी वक्त की बात है ,
 क्योंकि वक्त ही बनाता, हमारे सारे हालात है।
                       इंसा बदले,हालात बदले,जमाना बदल गया,
                       वक्त तो वक्त है ,हर मोड़ पे एक रफ्तार से चलता है।
इस वक्त की ना कोई महजब , ना कोई जात है,
इसका ना कोई अरमा ,ना कोई जज्बात है ।
                       वक्त रहते जिसने, इस वक्त को सही जाना है,
                       वक्त ने भी वक्त पर ,दिया उसे हर खजाना है।
इस
वक्त को ना किसी ने देखा ना कोई खोज सका है,
इस वक्त को इंसा तो क्या, खुदा भी ना रोक सका हैै।
                      जिस वक्त जो चाहा वो मिल जाए, वो वक्त की ही बात है,
                             वक्त के आगे तो ,बेबस सारी कायनात है।
वक्त के पहले ,इंसा कुछ ना पाता है ,
क्योंकि इस वक्त को तो ,खुदा खुद ही बनाता है।



Wednesday 7 September 2011

ख्वाहिश


इंसान की फितरत में कितनी हसरत होती है,
कि हर ख्वाहिश ,उसकी जरूरत होती है ।
                           जो चाह लिया ,उसे हासिल कर जाना है ,
                            उसके लिए ही फिर ,रब को भी मनाना हैं।
मानो उस ख्वाहिश से बढ़कर कोई चाहत ना होगी,
उससे ज्यादा किसी की भी इबादत ना होगी।

पर उस ख्वाहिश के मिलने पर अंजाम यही होता है,
शुरू में जैसे,सारी जिंदगी का अरमान यही होता है।
,पर कुछ दिन मे ये ख्वाहिश,फरमाइश सी लगने लगती है,
कुछ दिनों के लिए पूरी हुई नुमाइश सी लगने लगती है।

ख्वाहिशे पूरा होने पर जब, उसकी अहमियत नही रखते,
फिर क्यों इंसा ऐसी ख्वाहिशे ही रखते है।
ख्वाहिशे वो नही जो पूरा होने पर कभी किसी मोड़ पर बदल जाए,
  ख्वाहिशे तो वो है जिसके पूरा होने पर जिदंगी बदल जाए।

Tuesday 6 September 2011

सादगी कहॉ खोती जा रही हैं ,
जिंदगी क्या होती जा रही है ।
ना चैन है ,ना अमन है ,
हर जगह हो रहा द्वन्द है ,
यहॉ तो खुद से हो रही जंग है,
हर एक चरित्र अपने आप में भंग है।
हर किसी की दृष्टी  में दोष है ,
जाने किस बात पे, सभी में रोष है।
क्यों बदलें की भावना ,हर दिल में पल रही हैं,
क्या सादगी से जिंदगी नही चल रही हैैं?
बाहरी सुंदरता के पीछे सब क्यों भागते हैं,
अंदर  की सुंदरता को क्यों नही भापते हैं।
 जरा अपने अंदर भी तो नजर ड़ालो,
बाहरी दुनिया के भ्रम को इतना ना पालो ।
क्षमा को अपना गहना बना लो ,
दूसरो की गलतियों कों ,अपनी सीख बना लो ।
दृष्टी को अपनी व्यापक बना लो ,
दूसरों में गलतियां ढूंढ़ते ,खुद को ना भुला लो।
हर मोंड़ पर एक पत्थर मिलेगा,
ना मान बैठो उसे राह का रोड़ा ,
उसी पत्थर से अपनी राह बना लो।
ये जिंदगी मिली है बड़े कर्म से ,
जी लो इसे भावों के मर्म सें।
ना करों जिंदगी को ,बैर में र्व्यथ।,
प्रेम बाटना ही है ,जिंदगी का सही अर्थ
इसी अर्थ कों अपने जीवन का आधार मानों।
ना कोई छोटा, ना कोई बड़ा,
और सभी जन को ,इसका हकदार मानो।

Monday 5 September 2011

formy friend divya poem

एक प्यारी सी लाली थी,
थोड़ी सी नखराली थी।
हसतीं थी हसातीं थी,
घर में धूम मचाती थी।
भैया की प्यारी बहना थी,
दीदी की प्यारी मैना थी।
मम्मी की प्यारी गुड़िया थी ,
पापा की प्यारी चिड़िया थी।
घर मे वो चह चह कर करती थी ,
और कभी ना वो चुप रहती थी ।
घर में उससें खुशहाली थी ,
घर की वो राजदुलारी थी।
खुद तो वो खूब खाती थी ,
पर औरो को खूब पकाती थी।
   रेड़ियों सिटी की दीवानी थी,
   फहत की चाहने वाली थी।
जॉकी बनने की ख्वाहिश थी,
तो करनी उसे पढ़ाई थी ,
इसलिए घर से हुई पराई थी।
मम्मी से दूर वो आई थी ,
मम्मी से दूरी पहली थी
पर  दूरी उसने सह ली थी ,
कुछ दिन शुरू में रोई थी,
मम्मी की यादों में खोई थी।
रात को थोड़ा डरती थी ,
सखियों संग सांेया करती थी,
गुड़मार्निंग फ्रैन्ड्स कह जगाती थी ,
और सबके साथ ही खाती थी
सबसे वो मिल जाया करती थी।
रंगों सी घुल जाया करती थी,
अब सबसे मिल गयी थी वो,
इस माहौल में ढ़ल गयी थी वो,
शक्कर सी घुल गयी थी वो,
अब मां के बिन रह लेती थी
अब तन्हा ही सो लेती थी।
अब चुप्पी उसकी भाग गई ,
और मनु की नई शुरूआत हुई,
सारी डॉरमी चहक गई,
रेड़ियों की धुन फैल गई ,
सबकी नकल बताती थी,
सबकों खूब हसातीं थी।
हर बात पे डायलॉग करती थी ,
फिल्मों की धुन में ही रहती थी ।
सबको उसको खूब चिढातें थें
-----कहके बुलाते थे ।
उसके नाम से चिढती थी।
सबकों चुप रहने को कहती थी।
डाइटिंग तो वो करती थी,
पर खूब मलाई खाती थी।
जैसी भी थी बडी प्यारी थी ,
सारी दुनिया से न्यारी थी।
ऐसी उसकी कहानी थी ,
बिन राजा के वो रानी थी ।
 

Friday 2 September 2011

आज याद आ गया, वो अफसाना ,
वो बीते हुए दिनों का, प्यार भरा फसाना।
      स्कूल के दिनों का वो गुजरा जमाना,
      गुनगुनाते फिरते थे जो ,वो प्यारा तराना ।
सावन के महीने का वो, मौसम सुहाना ,
एक छतरी लेकर ,वो स्कूल को जाना।
   शुरू होता है इसी वक्त वो, टूयूशन का दौर ,
  पूछो ना यारो ,वो वक्त था कुछ और।
स्कूल में जाते ही ,सीटे हथियाना ,
प्रेयर में जाकर ,हल्ला करवाना।
   क्लास मे आ करके, शोर मचाना
   टीचर के आते ही ,सीधे बन जाना।
फस्ट क्लास से ही, लंच बॉक्स निकालना,
लंच टाइम आने के पहले खा जाना ।
 
       टूयूशन मे जी भर के मौज मनाना,
       टीचर के आने पर उनको सताना ।
घंटेभर पढकर फिर बाते बताना ,
लड़को को पार्टी के लिए ,बहाने बताना,
         उनसे ही टूयूशन में समोसे मंगाना ,
         उनकी कॉपी मे कार्टूनस बनाना,,
स्कूल में फै्रंडृस से गप्पे लडा़ना,
लासट प्रियड़ आते ही ,शुरू करना गाना बजाना।
                                 किसी को भी किसी का नाम लेकर चिढाना ,
                                   वो रूढ़ जाए फिर उसको मनाना।
यही तो होता है स्कूल टाइम का फन ,
स्कूल लाइफ ही तो होती है,यारो टन टनाटन टन।

Wednesday 31 August 2011

अश्क


ये अश्क कितने खास होते है ,
कभी खुशी कभी गम का अहसास होते है।
   कभी उदास होतो,इन्हे बहा दो ,
   दिल मे जो सुकू मिले,
   वो कोई और ना दे पायेगा।
 वो चैन,वो करार,
जिसकी चाहत को है दिले बेकरार।
   इन अश्कों
की राहत कही और ना मिलेगी,
   ये अस्क वो दवा है जो हर पीर पर चलेगी।
प्यार में जब ये अश्क बहतें है ,
मत पूछो क्या कहानी कहते है।
   ऑखों से बहकर ही,हर राज खोल देते है,
  खामोस रहकर भी अल्फाज बोल देते है।
कभी मिलने की हसरत में,
अश्क निकल जाते हैं
तो कभी बिछडने के गम से ,ये फिसल जाते है ।
मत पूछो यारो इन अस्क का दर्द ,
कही कह ना दे दुनिया इसे बेशर्म
   कि क्यों हर वक्त ये, इन ऑखों से नाता जोड देते है,
   हर आलम में अपना ,अहसास छोड़ जाते है,
अरे दोस्त इन अश्कों को ,थोड़ी तव्ज्जों तो दीजियें,
जो बात वो लफ्जों से ना सुलझे, उसे
अश्क से हल कर लीजिये।   
     और जो बात अश्क ,बिन लफ्ज के बयां कर देते है
     वो बात लफ्ज हों कर भी ,जुबा नही कर पाते है। 
                                                                                    ANKITA JAIN


Sunday 28 August 2011

मज़हब की शरहद

एक मज़हब की शरहद में ,जाने सब क्यों बंध जाते है,
इसी शरहद के वास्ते,
प्यार के रिश्तें भी कितने ग़मगीन बन जाते हैं ।
               ना इल्म था ये दिल ,इस कदर नाद़ां बनेगा,
               इत्तेफाकन हुआ इश्क, यूं परवान चढ़ेगा।
हर दिल अजीज कोई ,इस कदर हो जाएगा
जिसे दफन होने पर भी ये जिस्म ,
खुद से जुदा ना कर पाएगा।
              इस इश्क के खातिर,इस जहां मे कोई आषियाना नही,
              पनाह दे सके जो इस गुनाह को,ऐसा कोई ठिकाना नही।
              हर शरहद से बड़ी,ये इश्क की दीवार है,
              एक तरफ अपना इश्क ,तो दूसरी तरफ अपना घरबार है।
इस दीवार के कारण ही सारी तकरार है,
कब ये दीवार टूटेगी,अब तो बस ये ही इंतजार है।
                अपनी   खुशी छोड़कर,
                अपनो को  खुश रखना ,यही दस्तूर हो गया है
                मज़हब के बाहर होना ही,
                इस इश्क का कसूर हो गया है।
इस कसूर की सजा की तो,इस कदर हीं अदायगी होगी ,
या तो अपनो की, या फिर इस इश्क की कुर्बानी होगी।
                गर इश्क का साथ चाहा ,तो अपनों का साथ ना मिल सका है।
                बहुत चाह कर भी ,
               मज़हबी दीवारों को ये इश्क तोड़ ना सका है।
अपनो के खातिर इश्क को बिछड़ना ही पड़ा हैं,
फिर चाहे जुदा होकर ,ताउम्र मरना पड़ा है।
इन इश्क के परवानों को तो,इस आग में जलना पड़ा है।
                 इस मज़हब की लौ में तिल तिल पिघलना पड़ा है।
                                          पर इस शमा को क्या कोई  मजहब बुझा सकी है,
                                   क्योंकि इस शमा को तो, खुद खुदा ने रोशनी दी है।                                                           
         

          
      

गरीब का दर्द!


गरीबी जाने ,क्या क्या पाप कराती है,
एक भले इंसान को, पापी बनाती है।
   कौन नही करता ,अपनी औलाद से प्यार ,
   पर ये गरीबी कराती है ,रिश्तों का व्यापर ।
श्यामू भी ना चाहता था करना ये पाप,
पर क्या करें,
गरीबी तो बन कर आती है श्राप ।
   घर चलाने का उसमे ,नही था औदा ,
   इसलिए करना पड़ा, उसे बेटी का सौदा।
महगांई में नही भर पा रहा था ,सभी का पेट,
इसलिए चढ़ानी पड़ी लाली की भेंट।
  बैठकर आंगन में श्यामू,आंसू बहाता रहा,
  लाली की याद में ,खुद को सताता रहा ।
सरकार  और पुलिस ,दोनो ने किया बदहाल ,
और पूछती रही श्यामू से ,कैसा है बेटी का हाल।
  महगांई की मार ने कर दिया था लाचार ,
  लाली के बदले ,पैसा मांग रही थी सरकार ।
इस महगांई ने तो ऐसा मंजर बना ड़ाला ,
जैसे किसी गरीब के सीने में,खंजर चला ड़ाला।
   ना पुलिस ने दिया साथ ,ना सरकार ने बढ़ाया हाथ,
   बस बिखरते रहे बाजार में ,गरीबी बाप के हालात ।
रो -रो के कहते रहे ,श्यामू के आंसू बार बार ,
माफ करना बिटिया ,गरीबी ने किया मुझे लाचार।



Thursday 25 August 2011

प्यार क्या है,

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Wednesday 24 August 2011

काश!

   काश! ,एक ऐसा अल्फाज़,
   जो हर शख्स कि ज़ुबा पर है,
   काश,किसी की ख्वाहिशों का ज़रिया,
   तो किसी के गम का फरमान,
   इस शब्द से इंसानियत का गहरा नाता है,
  हर शख्स इसका गुलाम हो जाता है।
       काश!ऐसा हुआ होता,
       और काश! ऐसा ना हुआ होता।
       हर किसी के जज्बातों को बयान करता है,
       कभी खु्रशी का,तो कभी गम का ऐलान करता है,
कभी कभी तो ये ज़हन मे आता है,
कि गर ये काश! ना होता,
तो जिंदगी क्या होती ।
       लोग अपने जज्बात कैसे कहते,
       खुदा से फरियाद का भी, तो यही एक ज़रिया है,
       और काश! कहकर ही तो उससे शिकायत भी होती है ।
गर ये शब्द ना हो तो क्या हो,
शायद,जहां को खुदा से शिकायत ना हो ।
इस काश! ने जिंदगी ही ऐसी बना दी है ,
मानो सारी जिंदगी एक इबादत बना दी है।
अपनी हर बात को खुदा से काश! लगाकर कहते रहते है ,
शायद ,खुदा की इस प्यारी दुनिया से,
इस काश!  के कारण खुश नही रहते हैं।
ये काश! ना होता तो क्या होता,
फिर शायद हर एक बात का,एक ही नज़रिया होता।
     अंकिता जैन

मेरा क्या कसूर?

कैसा अजब तूने ,ये खुदा कर दिया,
नन्ही सी जान को ,माँ से जुदा कर दिया ,
    क्या कसूर था ,उस नन्ही सी जान का,
   जो उसे, माँ बिन जीने को, मजबूर कर दिया।
इस जग में उसकी जिंदगी, कितनी मुश्किल बन जाएगी ,
मानो ये जिंदगी उसके लिए ,बंदगी बन जाएगी।
   बिन माँ के वो नन्ही जान कैसे पलेगी,
   तू ही बता,माँ की छाया उस,े कहाँ से मिलेगी?
क्या वो माँ सा दुलार,कोई दूसरा कर पायेगा?
और उसकी माँ की जगह,क्या कोई दूसरा भर पायेगा?
    उस बाप की भी कितनी बेवसी होगी,
   जब वो ही ना होगा, जिसमें उस नन्ही की जान बसी होगी।
  वो ख्वाब जो उसने माँ के साथ मिलकर सजाया था।
  वो ख्वाब ऐसा हकीकत में ऐसा होगा,
  वो कभी सोच भी ना पाया था।
कितनी शिद्दत ये लम्हा, जिंदगी दिखलाती हैं,
बिखर जाता है सब कुछ, जब लम्हा देने वाली ही चली जाती हैं,
 उस नन्ही जान की ,तब क्या जिंदगी होगी ,
 उस अनजान को जब सारी दुनिया कोस रही होगी।
अरे उस नादान की क्या,इसमेकोई रजा हैं,
खुद ही सोचों, उसके लिए इससे बड़ी भी कोई सजा है ।
 बिन माँ के वो कैसे बचपन बिताएगी,
 ये जग कही ऐसा  ना बना दे,
कि समझ आने पर वो अपने होने पर ही पछतायेगी।
        
ऐसे निर्दोष को क्यों दुनिया कोसती रही है
                       क्या वो ये नही जानते
        कि खुदा की मर्जी बिन तो ,पत्ती भी ना हिल सकी है।
तो क्यों नही देती दुनिया,उस नन्ही जान को हौसला,
क्यों नही समझती इसे खुदा का ही एक फैसला।



Monday 22 August 2011

मॉ का ऑचल

मॉ का ऑचल
दुनिया की हर चीज से निराला,
सबसे ज्यादा सुकून देने वाला।
चाहे खुशी हो या ऑखे नम,
मॉ के ऑचल का
,साया मिले हर दम।
बिना किसी स्वार्थ के
, उसने हमें पाला ।
भला मॉ के आंचल से ,कुछ है निराला ।
      गर्मियों के दिन हो या
, सर्दियों की रातें।
     सोयेंगी वो भी ना जब तक, बंद ना हो मेरी आंखे।
 मेरी हर मुश्किल पल में हल कर देती है। 

    मेरे चेहरे की परेशानी,झट से वो पढ़ लेती है।
हमें ड़ाट कर खुद भी
, ना चैन पाती है
हमारें साथ साथ खुद भी
,रोने लग जाती है।
तुमको कुछ ना आता
, घर पर मुझसे वो कहती है
 पर औरो के आगे मेरी वो, खूब बड़ाई कहती हैं।
       मॉ की सूनी आंखों मे
, कभी ना आंसू ना लाना।
       उसके ऑचल से हाथ
,कभी ना छुडाना।
       ऐसी कौन सी चीज है,जो दोबारा नही मिलती।
       सब कुछ मिल जाता है
, पर मॉ नही मिलती।

बचपन का जमाना।



बचपन के पलों को यारो,कभी ना भुलाना
याद आता है यारो ,वो बचपन सुहाना।
वो जोर जोर से चीख कर,छत पर बारिश में नहाना
और कागज के टुकड़ो की नाव बनाना।
                   
                       माँ से छुप कर,घर से बाहर आना
                    और फिर घर घर जाकर सबको बुलाना।   
                  दोपहर की धूप में मिट्टी ढ़ोकर लाना
                 फिर उस माटी से छोटे छोटे बर्तन बनाना।  
                 
स्कूल से आते वक्त ब्रिज पर जाना 
ट्रेन को देखकर खूब हल्ला मचाना।
टिचर को आते देख वहॉ से भाग जाना
बहुत याद आता है यारो, वो बचपन सुहाना।
  
                                             याद आता है वो बगीचे से जामुन चुराना
    पेड़ो पर चिड़िया का घोसला बनाना ।
    माली को आते देख उसे चिढ़ाना
  बहुत याद आता है,उस माली को सताना।
भोलेपन से सभी रिश्तों को बनाना
और बिना बंधन उन रिश्तों को निभाना।
किसी भी बात को दिल से ना लगाता
कहाँ गया यारो वो मासूम बचपन का जमाना।

Thursday 18 August 2011

दिल कहता है


 काश ये जिंदगी इतनी आसान होती
कि लडकी भी सभी के लिए समान होती
होती उसे भी आजादी खुल के जी पाने की
और होती उसे भी इजाजत स्कूल जाने की
गर ना कहते बाबा बात उसके ब्याह रचाने की ।
मैं उड सकती खुले आसमान में
रह सकती अपने ख्वाबों के जहान में ।
मैं भी कर सकती थी बाबा के सपनोे को पूरा
भैया की तरह मै भी बाबा की शान होती
काश ये जिंदगी इतनी आसान होती
आज भेज दिया बाबा ने मुझे दूसरंे घरान  में
कर दिया ब्याह मेरा एक अनजाने गुलिस्तान में
मेरी चाहत भी किसी के दरमियान होती
मेरे सपनोे की भी अपनी पहचान होती
काश ये जिंदगी इतनी आसान होती।
आज मेरी बिटिया भी है मेरी गोंद में
और आज फिर मैं हूं इसी सोच में
क्या रह सकेगी बिटिया ,अपनी पहचान में
बिना किसी बंधन,आजाद इस जहान  में।
काश हर बेटी ना ऐसे कुरबान होती
काश ये जिंदगी इतनी आसान होती।