Tuesday 27 September 2011

बारिश की बूंदे



बारिश की बूंदे कितनी प्यारी होती है,
जैसे किसी बगिया में बयारे होती है ।
हर किसी की अपनी अलग कहानी होती है,
किसी के लिए खुशियों का अहसास ,तो  किसी के लिए यादों के पैमाने होते है।
 
किसी बच्चे की मासूम ख्वाहिश होती है ,
तो जवा दिलों कि ये हसरत होती है ।
किसी बूढ़े के बीते दिनों कि याद होती है
और हर किसी के लिए इसकी अपनी कायनात होती है।
वैसे तो बारिश की बूंदे धरती पे नीर गिराती है ,
पर कही कही ये बूंदे मन में एक मीठा सा पीर दे जाती है।
धरती गीली,,मिट्टी सौंधी,पेडों में रस भर जाती है
बड़ा सुहाना लगता है ,जब बगिया प्यारी खिल जाती है।
कुछ भी मानो कुछ भी जानो ये बारिश बड़ी निराली है ,
पल मे शोला,पल मे शबनम, दिल को करने वाली है ।
ठहरे हुए मन में भी हलचल मचा देती है ,
कुछ भी कह दो पर ये बारिश तो बड़ा सुकू देती है।
 

Tuesday 20 September 2011

जिंदगी से आज मेरी,मुलाकात हो गई ,



जिंदगी से आज मेरी,मुलाकात हो गई ,
कुछ देर बाते राहो में ,उसके साथ हो गई।
कुछ अटपटी, तो कुछ सीधी सी बात हुई ,
कुछ हैरानी, तो कुछ मुस्कुराहटे लाती हुई ।
कभी ये पहेली ,कभी सुलझी सी चकोर लगती है,
कभी जैसे पतंग में, उलझी हुई ड़ोर लगती है। 

कभी धूप कभी छाव ,हर रंग अपने दिखा दिये 
कभी पल में खुशिया तो कभी,दुनिया के सारे रंग दिखा दिये ।        
किसी से कुछ ना चाहो, इसी में सबसें बडी खुशी है ,
दूसरो को हसीं देना ही ,यही जिंदगी है
हर पल को अनमोल बनाने का ,फलसफा सिखा गई ,

एक छोटी सी मुलाकात में जीने का सलिका बता गई।
 


Sunday 18 September 2011

जाने क्यों ,आज दिन गुम सा है,

जाने क्यों ,आज दिन गुम सा है,
जुबा से कहकर भी ,अंदर गुमसुम सा है।
सब कुछ जानकर भी, बन रहा अनजान है,
जाने क्यों ये दिल, इतना नादान है ।
आज दिल की उलझन ,क्यों बढ़ रही है,
माथे की भौ जाने, क्यों चढ़ रही है ं
बिन बात के ये ,जाने क्यों रूठा बैठा है,
मनाकर हार गए ,पर यू ही ऐठा बैठा है।
एक याद है या यादों का जहान,
सब है मगर ,फिर कुछ पाने का अरमान है।
 भरी महफिल में भी, तनहा कर रहा है,
जने किस बात पे ये ,इतना ड़र रहा है।
किसी की यादों को ,दिल से जोड़ रहा है
वो पास है फिर भी ,उसे पाने को दौड़ रहा है।
जाने क्यों आज से ज्यादा ,बीते पल की याद को संजो रखा है ,
समझ नही आता,
इन बीते पल की ,यादों में क्या रखा है।
लाख पूछने पर भी ,करता यही बयान हैं
कि बस ये समझ लो ,इन यादों से मेरी पहचान है।
जाने क्यों ये दिल ,इन यादों के मरहूम हो गया है,
इन यादोें से ही शायद ये दिल आज गुमसुम हो गया है।

Wednesday 14 September 2011

चाँद की हसरत


उस चाँद को देखकर भी ,ये ऐहसास होता है ,
कि वो हमसे दूर रहकर भी ,
हमारे पास हमारे पास होता है।
खुद तो   चाँदनी के बिन ,कितना उदास होता है ,
पर दो दिलो को मिलाने की, लिये आस होता है ।
दर्द जानता है ,वो जुदाई का
  क्या होता है, आलम तन्हाई का ।
                         चाँदनी से मिलने की, जब प्यास होती है,
   पर उस मिलन पर भी, कयास होती है।
कैसे गुजरती है ,वो तन्हाई की रातें ,
जब चाँदनी से उसकी ,नही होती है बातें ।
उस चाँदनी की भी, ये बेवसी होती है
और  चाँद की चाह में ही, सारी जिंदगी होती है।

   चाँद की चाहत में ,ना बेवफाई  है,
  हर किसी की चाहत की ,यही रूसवाई है।
जब इस चाहत की, दूरियाँ सिमटी है ,
तब इस जहॉ से तिमिर की ,छाया मिटी है ।
चाहत से हमेशा ,जहॉ मे रोशनी हुई है,
सच्ची चाहत की हर मोड़ पर ,आजमाइस हुई है।
इसलिए चाँद आज भी, चाँदनी के लिए रोता है ,
और बिन चाँदनी के वो, हमेशा अधूरा होता है।

Thursday 8 September 2011

वक्त

वक्त,सुनकर ही दिल थम सा जाता है,   
ना जाने अगला लम्हा कहॉ को जाता है।
                      हर कोई इस वक्त के पीछे भागता है,
वक्त पे सोता और वक्त पे जागता है।
हर कदम कदम में इस वक्त की ऐतियात है,
क्योंकि कहते है किस्मत बदलना ,वक्त वक्त की बात है।
क्या कभी ये वक्त किसी के आगे झुका है,
और ,कम्बख्त वक्त कहॉ किसी के लिए रूका है।
जो वक्त रहते, इस वक्त का हमदम हो गया ,
समझो कामयाब वो, हरकदम हो गया।
                       और जिसने  भी इस वक्त की कद्र ना किया है ,
                        इस वक्त ने भी उसको बेकद्र किया है।
किसी का साथ मिलना ,और बिछड़ना भी वक्त की बात है ,
 क्योंकि वक्त ही बनाता, हमारे सारे हालात है।
                       इंसा बदले,हालात बदले,जमाना बदल गया,
                       वक्त तो वक्त है ,हर मोड़ पे एक रफ्तार से चलता है।
इस वक्त की ना कोई महजब , ना कोई जात है,
इसका ना कोई अरमा ,ना कोई जज्बात है ।
                       वक्त रहते जिसने, इस वक्त को सही जाना है,
                       वक्त ने भी वक्त पर ,दिया उसे हर खजाना है।
इस
वक्त को ना किसी ने देखा ना कोई खोज सका है,
इस वक्त को इंसा तो क्या, खुदा भी ना रोक सका हैै।
                      जिस वक्त जो चाहा वो मिल जाए, वो वक्त की ही बात है,
                             वक्त के आगे तो ,बेबस सारी कायनात है।
वक्त के पहले ,इंसा कुछ ना पाता है ,
क्योंकि इस वक्त को तो ,खुदा खुद ही बनाता है।



Wednesday 7 September 2011

ख्वाहिश


इंसान की फितरत में कितनी हसरत होती है,
कि हर ख्वाहिश ,उसकी जरूरत होती है ।
                           जो चाह लिया ,उसे हासिल कर जाना है ,
                            उसके लिए ही फिर ,रब को भी मनाना हैं।
मानो उस ख्वाहिश से बढ़कर कोई चाहत ना होगी,
उससे ज्यादा किसी की भी इबादत ना होगी।

पर उस ख्वाहिश के मिलने पर अंजाम यही होता है,
शुरू में जैसे,सारी जिंदगी का अरमान यही होता है।
,पर कुछ दिन मे ये ख्वाहिश,फरमाइश सी लगने लगती है,
कुछ दिनों के लिए पूरी हुई नुमाइश सी लगने लगती है।

ख्वाहिशे पूरा होने पर जब, उसकी अहमियत नही रखते,
फिर क्यों इंसा ऐसी ख्वाहिशे ही रखते है।
ख्वाहिशे वो नही जो पूरा होने पर कभी किसी मोड़ पर बदल जाए,
  ख्वाहिशे तो वो है जिसके पूरा होने पर जिदंगी बदल जाए।

Tuesday 6 September 2011

सादगी कहॉ खोती जा रही हैं ,
जिंदगी क्या होती जा रही है ।
ना चैन है ,ना अमन है ,
हर जगह हो रहा द्वन्द है ,
यहॉ तो खुद से हो रही जंग है,
हर एक चरित्र अपने आप में भंग है।
हर किसी की दृष्टी  में दोष है ,
जाने किस बात पे, सभी में रोष है।
क्यों बदलें की भावना ,हर दिल में पल रही हैं,
क्या सादगी से जिंदगी नही चल रही हैैं?
बाहरी सुंदरता के पीछे सब क्यों भागते हैं,
अंदर  की सुंदरता को क्यों नही भापते हैं।
 जरा अपने अंदर भी तो नजर ड़ालो,
बाहरी दुनिया के भ्रम को इतना ना पालो ।
क्षमा को अपना गहना बना लो ,
दूसरो की गलतियों कों ,अपनी सीख बना लो ।
दृष्टी को अपनी व्यापक बना लो ,
दूसरों में गलतियां ढूंढ़ते ,खुद को ना भुला लो।
हर मोंड़ पर एक पत्थर मिलेगा,
ना मान बैठो उसे राह का रोड़ा ,
उसी पत्थर से अपनी राह बना लो।
ये जिंदगी मिली है बड़े कर्म से ,
जी लो इसे भावों के मर्म सें।
ना करों जिंदगी को ,बैर में र्व्यथ।,
प्रेम बाटना ही है ,जिंदगी का सही अर्थ
इसी अर्थ कों अपने जीवन का आधार मानों।
ना कोई छोटा, ना कोई बड़ा,
और सभी जन को ,इसका हकदार मानो।

Monday 5 September 2011

formy friend divya poem

एक प्यारी सी लाली थी,
थोड़ी सी नखराली थी।
हसतीं थी हसातीं थी,
घर में धूम मचाती थी।
भैया की प्यारी बहना थी,
दीदी की प्यारी मैना थी।
मम्मी की प्यारी गुड़िया थी ,
पापा की प्यारी चिड़िया थी।
घर मे वो चह चह कर करती थी ,
और कभी ना वो चुप रहती थी ।
घर में उससें खुशहाली थी ,
घर की वो राजदुलारी थी।
खुद तो वो खूब खाती थी ,
पर औरो को खूब पकाती थी।
   रेड़ियों सिटी की दीवानी थी,
   फहत की चाहने वाली थी।
जॉकी बनने की ख्वाहिश थी,
तो करनी उसे पढ़ाई थी ,
इसलिए घर से हुई पराई थी।
मम्मी से दूर वो आई थी ,
मम्मी से दूरी पहली थी
पर  दूरी उसने सह ली थी ,
कुछ दिन शुरू में रोई थी,
मम्मी की यादों में खोई थी।
रात को थोड़ा डरती थी ,
सखियों संग सांेया करती थी,
गुड़मार्निंग फ्रैन्ड्स कह जगाती थी ,
और सबके साथ ही खाती थी
सबसे वो मिल जाया करती थी।
रंगों सी घुल जाया करती थी,
अब सबसे मिल गयी थी वो,
इस माहौल में ढ़ल गयी थी वो,
शक्कर सी घुल गयी थी वो,
अब मां के बिन रह लेती थी
अब तन्हा ही सो लेती थी।
अब चुप्पी उसकी भाग गई ,
और मनु की नई शुरूआत हुई,
सारी डॉरमी चहक गई,
रेड़ियों की धुन फैल गई ,
सबकी नकल बताती थी,
सबकों खूब हसातीं थी।
हर बात पे डायलॉग करती थी ,
फिल्मों की धुन में ही रहती थी ।
सबको उसको खूब चिढातें थें
-----कहके बुलाते थे ।
उसके नाम से चिढती थी।
सबकों चुप रहने को कहती थी।
डाइटिंग तो वो करती थी,
पर खूब मलाई खाती थी।
जैसी भी थी बडी प्यारी थी ,
सारी दुनिया से न्यारी थी।
ऐसी उसकी कहानी थी ,
बिन राजा के वो रानी थी ।
 

Friday 2 September 2011

आज याद आ गया, वो अफसाना ,
वो बीते हुए दिनों का, प्यार भरा फसाना।
      स्कूल के दिनों का वो गुजरा जमाना,
      गुनगुनाते फिरते थे जो ,वो प्यारा तराना ।
सावन के महीने का वो, मौसम सुहाना ,
एक छतरी लेकर ,वो स्कूल को जाना।
   शुरू होता है इसी वक्त वो, टूयूशन का दौर ,
  पूछो ना यारो ,वो वक्त था कुछ और।
स्कूल में जाते ही ,सीटे हथियाना ,
प्रेयर में जाकर ,हल्ला करवाना।
   क्लास मे आ करके, शोर मचाना
   टीचर के आते ही ,सीधे बन जाना।
फस्ट क्लास से ही, लंच बॉक्स निकालना,
लंच टाइम आने के पहले खा जाना ।
 
       टूयूशन मे जी भर के मौज मनाना,
       टीचर के आने पर उनको सताना ।
घंटेभर पढकर फिर बाते बताना ,
लड़को को पार्टी के लिए ,बहाने बताना,
         उनसे ही टूयूशन में समोसे मंगाना ,
         उनकी कॉपी मे कार्टूनस बनाना,,
स्कूल में फै्रंडृस से गप्पे लडा़ना,
लासट प्रियड़ आते ही ,शुरू करना गाना बजाना।
                                 किसी को भी किसी का नाम लेकर चिढाना ,
                                   वो रूढ़ जाए फिर उसको मनाना।
यही तो होता है स्कूल टाइम का फन ,
स्कूल लाइफ ही तो होती है,यारो टन टनाटन टन।