Tuesday 6 September 2011

सादगी कहॉ खोती जा रही हैं ,
जिंदगी क्या होती जा रही है ।
ना चैन है ,ना अमन है ,
हर जगह हो रहा द्वन्द है ,
यहॉ तो खुद से हो रही जंग है,
हर एक चरित्र अपने आप में भंग है।
हर किसी की दृष्टी  में दोष है ,
जाने किस बात पे, सभी में रोष है।
क्यों बदलें की भावना ,हर दिल में पल रही हैं,
क्या सादगी से जिंदगी नही चल रही हैैं?
बाहरी सुंदरता के पीछे सब क्यों भागते हैं,
अंदर  की सुंदरता को क्यों नही भापते हैं।
 जरा अपने अंदर भी तो नजर ड़ालो,
बाहरी दुनिया के भ्रम को इतना ना पालो ।
क्षमा को अपना गहना बना लो ,
दूसरो की गलतियों कों ,अपनी सीख बना लो ।
दृष्टी को अपनी व्यापक बना लो ,
दूसरों में गलतियां ढूंढ़ते ,खुद को ना भुला लो।
हर मोंड़ पर एक पत्थर मिलेगा,
ना मान बैठो उसे राह का रोड़ा ,
उसी पत्थर से अपनी राह बना लो।
ये जिंदगी मिली है बड़े कर्म से ,
जी लो इसे भावों के मर्म सें।
ना करों जिंदगी को ,बैर में र्व्यथ।,
प्रेम बाटना ही है ,जिंदगी का सही अर्थ
इसी अर्थ कों अपने जीवन का आधार मानों।
ना कोई छोटा, ना कोई बड़ा,
और सभी जन को ,इसका हकदार मानो।

No comments:

Post a Comment