Wednesday 14 September 2011

चाँद की हसरत


उस चाँद को देखकर भी ,ये ऐहसास होता है ,
कि वो हमसे दूर रहकर भी ,
हमारे पास हमारे पास होता है।
खुद तो   चाँदनी के बिन ,कितना उदास होता है ,
पर दो दिलो को मिलाने की, लिये आस होता है ।
दर्द जानता है ,वो जुदाई का
  क्या होता है, आलम तन्हाई का ।
                         चाँदनी से मिलने की, जब प्यास होती है,
   पर उस मिलन पर भी, कयास होती है।
कैसे गुजरती है ,वो तन्हाई की रातें ,
जब चाँदनी से उसकी ,नही होती है बातें ।
उस चाँदनी की भी, ये बेवसी होती है
और  चाँद की चाह में ही, सारी जिंदगी होती है।

   चाँद की चाहत में ,ना बेवफाई  है,
  हर किसी की चाहत की ,यही रूसवाई है।
जब इस चाहत की, दूरियाँ सिमटी है ,
तब इस जहॉ से तिमिर की ,छाया मिटी है ।
चाहत से हमेशा ,जहॉ मे रोशनी हुई है,
सच्ची चाहत की हर मोड़ पर ,आजमाइस हुई है।
इसलिए चाँद आज भी, चाँदनी के लिए रोता है ,
और बिन चाँदनी के वो, हमेशा अधूरा होता है।

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