Monday 5 September 2011

formy friend divya poem

एक प्यारी सी लाली थी,
थोड़ी सी नखराली थी।
हसतीं थी हसातीं थी,
घर में धूम मचाती थी।
भैया की प्यारी बहना थी,
दीदी की प्यारी मैना थी।
मम्मी की प्यारी गुड़िया थी ,
पापा की प्यारी चिड़िया थी।
घर मे वो चह चह कर करती थी ,
और कभी ना वो चुप रहती थी ।
घर में उससें खुशहाली थी ,
घर की वो राजदुलारी थी।
खुद तो वो खूब खाती थी ,
पर औरो को खूब पकाती थी।
   रेड़ियों सिटी की दीवानी थी,
   फहत की चाहने वाली थी।
जॉकी बनने की ख्वाहिश थी,
तो करनी उसे पढ़ाई थी ,
इसलिए घर से हुई पराई थी।
मम्मी से दूर वो आई थी ,
मम्मी से दूरी पहली थी
पर  दूरी उसने सह ली थी ,
कुछ दिन शुरू में रोई थी,
मम्मी की यादों में खोई थी।
रात को थोड़ा डरती थी ,
सखियों संग सांेया करती थी,
गुड़मार्निंग फ्रैन्ड्स कह जगाती थी ,
और सबके साथ ही खाती थी
सबसे वो मिल जाया करती थी।
रंगों सी घुल जाया करती थी,
अब सबसे मिल गयी थी वो,
इस माहौल में ढ़ल गयी थी वो,
शक्कर सी घुल गयी थी वो,
अब मां के बिन रह लेती थी
अब तन्हा ही सो लेती थी।
अब चुप्पी उसकी भाग गई ,
और मनु की नई शुरूआत हुई,
सारी डॉरमी चहक गई,
रेड़ियों की धुन फैल गई ,
सबकी नकल बताती थी,
सबकों खूब हसातीं थी।
हर बात पे डायलॉग करती थी ,
फिल्मों की धुन में ही रहती थी ।
सबको उसको खूब चिढातें थें
-----कहके बुलाते थे ।
उसके नाम से चिढती थी।
सबकों चुप रहने को कहती थी।
डाइटिंग तो वो करती थी,
पर खूब मलाई खाती थी।
जैसी भी थी बडी प्यारी थी ,
सारी दुनिया से न्यारी थी।
ऐसी उसकी कहानी थी ,
बिन राजा के वो रानी थी ।
 

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