Sunday 18 September 2011

जाने क्यों ,आज दिन गुम सा है,

जाने क्यों ,आज दिन गुम सा है,
जुबा से कहकर भी ,अंदर गुमसुम सा है।
सब कुछ जानकर भी, बन रहा अनजान है,
जाने क्यों ये दिल, इतना नादान है ।
आज दिल की उलझन ,क्यों बढ़ रही है,
माथे की भौ जाने, क्यों चढ़ रही है ं
बिन बात के ये ,जाने क्यों रूठा बैठा है,
मनाकर हार गए ,पर यू ही ऐठा बैठा है।
एक याद है या यादों का जहान,
सब है मगर ,फिर कुछ पाने का अरमान है।
 भरी महफिल में भी, तनहा कर रहा है,
जने किस बात पे ये ,इतना ड़र रहा है।
किसी की यादों को ,दिल से जोड़ रहा है
वो पास है फिर भी ,उसे पाने को दौड़ रहा है।
जाने क्यों आज से ज्यादा ,बीते पल की याद को संजो रखा है ,
समझ नही आता,
इन बीते पल की ,यादों में क्या रखा है।
लाख पूछने पर भी ,करता यही बयान हैं
कि बस ये समझ लो ,इन यादों से मेरी पहचान है।
जाने क्यों ये दिल ,इन यादों के मरहूम हो गया है,
इन यादोें से ही शायद ये दिल आज गुमसुम हो गया है।

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