Wednesday 9 May 2012


हम चाहकर भी,हमसे दिख नही पाते,
जीते तो है मगर, खुद सा जी नही पाते।
 क्या दिखना है, वही दिखाते है
और क्या है हम, ये खुद के अंदर छुपा लेते हैं।
खुल के जीने की चाह भी है अरमान भी है,
और इस दुनिया से परे, खुद का गुमान भी हैं।
पर इस दुनिया के लिए, खुद को खोते जा रहे है,
दुनिया के धागे मे ,खुद को मोतियांे सा पिरोते जा रहे है।
जी तो चाहता है,इसे धागें से आजाद होने को ,
उपने में सिमट कर, खुद में जीने केा।
ना जाने कब इस बंधन को, मै तोड़ पाऊंगी।
दुनिया केl भूल कर, खुद में आजाद रहकर जी पाऊंगी?

Monday 26 March 2012

खुशियां



खुशियां आती है, हलचल मचाती है,
दो पल पास रहकर, दूर चली जाती है।
मैं चाहती हू हर पल उसका साथ,
पर हमेशा मुझे वो कर जाती है उदास।
 जब तक रहती है ये मेरे साथ , दे जाती मुझे कुछ नया सा अहसास,
होंठो की पंखुडि़या खुल जाती, और की चमक लौट आती है।
चेहरे की रंगत कुछ अलग ही नजर आती है,
और दिल में उमंगो की बरसात सी हो जाती है।
पर क्यूं मुझ संग ये आॅख मिचैली सी खेल रही है,

कुछ पल सामने रहकर जाने कहां छिप रही है।
ढूंढती फिरती हू इन्हे में , हर कदम हर राह पे ,
कुछ पल के लिए मिलती ,एक अनजानी पनाह में।
जाने क्यूं मुझसे ये रूठी है,
अपनी जिद मेंु ऐसे ऐठी है।
बहुत हो गयी तेरी जिद और तेरी दूरी,
आ जा पास ,तू समझ ले मेरी भी मजबूरी ।
ले मै हारी और हो गई तेरी जीत,
अब लौट भी ऐ खुशी बनकर मेंरी मीत।


Thursday 8 March 2012

काश ये जिंदगी फूलो सी बन जाती,



काश ये जिंदगी फूलो सी बन जाती,
दूसरों को खुश्बू देकर खुद महक जाती।
अपने लिए ना कोई चाह ,ना कोई अरमान,
             दूसरों के नित होने में ही है, उसका  स्वाभिमान,                     
 
 
काश हम भी एक फूल की तरह जाी पाते।
निज का स्वार्थ तज, दूसरों के हित कर पाते,
काटो के बीच रहकर भी ,मखमल सा बन पाते।
इन फूलों की क्या जिंदगानी होती है,
उनके हर एक जर्रे की उनसे ,बेगानी होती है।
तितलियों के लिए रंग, भौरो के लिए खुश्बू ,
अर्थी हो या भगवान की मूरत, दोनों के नित है एक ही सूरत।

किसी भी बात पर गुमान ना अफसोस उसे ,
ना ही किसी से खुशी और ना किसी से रोष उसे।  
                         
 
                                                   काश हम भी इस फूल की तरह, निष्छल रह पाते
सभी परिस्थितियों में उनसा ,सम रह पातें।


Thursday 2 February 2012

तेरी याद

आज तेरी याद आ रही है,
तेरी अधूरी बात तड़पा रही हैं।
एक बार तो तूने दिल की बात कही होती,
तो आज तेरी कमी यू ना हुई होती।
क्या वजह हो गयी तेरे इतने दूर जाने कीं,
इतने दूर की कभी लौट के ना आने की।
तेरी बात न सुन पाने की मुझसे भूल हुई,
क्या यही थी वजह जो तू  मुझसे दूर हुई।
त ू तन्हा करके मुझे चली गई,
कितने सवाल मेरे मन मे छोड गई।
इन सवालो के जवाब मैं कहाॅ से पाऊ।
अब तुझे फिर से पाने के लिए अब मै क्या कर जाऊॅ,
अब तुझे फिर से पाने के लिए अब मंै क्या कर जाऊॅ।
आज दिल तुझे आवाज लगा रहा है,
तेरे दूर होने पर भी तुझे करीब पा रहा है।
तू इतनी दूर चली गई है,
ये ना मान पा रहा है।
दिल कहता है तू कही है  लौटकर जरूर आयेगी,
मेरे सारे सवालों के जवाब दे जायेगी।

Tuesday 31 January 2012

जिदंगी के सफर में चले जा रहे है,

जिदंगी के सफर  में चले जा रहे है,
रास्ते में ना जाने कितने मुका आ रहे है,
कुछ जाने कुछ अनजान से मुकाम है,
और सफर की मंजिल से हम अब तक अनजान हैंे।
 कितने मोड आये,कितनी राहे बदल गयी,
 कितनी मंजिल आयी और आकर निकल गयी।
हम अब तक बस,सफर तय किये जा रहे हैं,
पर मंजिल का निशा अब भी हम कहा पा रहे है?
राहों पे चलते हुऐ मंजिले बदलती गयी,
हर राह पे एक नयी मंजिल बनती गयी।
                                                      तमन्ना