Tuesday 31 January 2012

जिदंगी के सफर में चले जा रहे है,

जिदंगी के सफर  में चले जा रहे है,
रास्ते में ना जाने कितने मुका आ रहे है,
कुछ जाने कुछ अनजान से मुकाम है,
और सफर की मंजिल से हम अब तक अनजान हैंे।
 कितने मोड आये,कितनी राहे बदल गयी,
 कितनी मंजिल आयी और आकर निकल गयी।
हम अब तक बस,सफर तय किये जा रहे हैं,
पर मंजिल का निशा अब भी हम कहा पा रहे है?
राहों पे चलते हुऐ मंजिले बदलती गयी,
हर राह पे एक नयी मंजिल बनती गयी।
                                                      तमन्ना