Thursday 8 March 2012

काश ये जिंदगी फूलो सी बन जाती,



काश ये जिंदगी फूलो सी बन जाती,
दूसरों को खुश्बू देकर खुद महक जाती।
अपने लिए ना कोई चाह ,ना कोई अरमान,
             दूसरों के नित होने में ही है, उसका  स्वाभिमान,                     
 
 
काश हम भी एक फूल की तरह जाी पाते।
निज का स्वार्थ तज, दूसरों के हित कर पाते,
काटो के बीच रहकर भी ,मखमल सा बन पाते।
इन फूलों की क्या जिंदगानी होती है,
उनके हर एक जर्रे की उनसे ,बेगानी होती है।
तितलियों के लिए रंग, भौरो के लिए खुश्बू ,
अर्थी हो या भगवान की मूरत, दोनों के नित है एक ही सूरत।

किसी भी बात पर गुमान ना अफसोस उसे ,
ना ही किसी से खुशी और ना किसी से रोष उसे।  
                         
 
                                                   काश हम भी इस फूल की तरह, निष्छल रह पाते
सभी परिस्थितियों में उनसा ,सम रह पातें।


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