Wednesday 12 October 2011


आज की रात बड़ी रूसवाई की है,
दो इश्के बफा की जुदाई की है।
 ये रात इस जॅहा से नजर चुरा रही है ,
दो इश्क के बांशिदोे पर कहर ढा रही है,
हर बीते लम्हे की यादे जहन में बस गई है।
मानो उन यादों से दिल की दुनिया झुलस रही हो।
कैसे भूल पाऐंगें वो लम्हे जो गुजारे साथ में ,
वादे किये जो उनसे ,हाथो को रख हाथ में ।
अब तो हर बात ,हर सांस में उनकी खुश्बू समाई है,
हर गुजरते लम्हे ने उसी की आश लगाई है।
दर्दे हिजरा लिये दिल यही पूछ रहा है,
ऐ खुदा बता ये तेरी कैसी खुदाई है।
इस दिल ने भी ना जाने,कैसी हसरत की है,
कैसे भूलेंगें उन्हे ,जिसकी इस दिल ने इबादत की है।
 बनकर बुत उनकी यादों को दफन कर लूंगी ,
सामा(सामान)समझ खुद को ,अजनबी के समन कर लूंगी।
ऐ खुदा मुझ पर तू इतनी रहम कर दे,
वो भूल जाए इस नाचीज को,इतना करम कर दें।
ये रात जिंदगी का,ऐसा फसाना बनेगी,
जिसे चाह कर भी जुबा दोहरा ना सकेगी ।
ना करना इस जिंदगी मे रूबरू उनसे ,खुदा,
ये नजर  उस नजर का तारूख ना कर सकेगी।

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