Wednesday 12 October 2011

आज माँ को मैने जाना है जाना है






 
माँ तेरी कमी आज मुझे रूला रही है ,
दिल की गहराई से तुझे बुला रही है।
आज याद आ रहा है तेरा मुझे सहलाना
वो मेरी उदासी में मुझको बहलाना।
                                     हर एक पल मुझे ,तेरी याद दिला रहा है,
                                    और तेरे क्या है जीना ,मुझको अहसास करा रहा है।
                                    रोज शाम को मैस की रोटी ,जब थाली में आती है ,
                                     तब तेरे हाथो की बाटी,तेरी याद दिलाती है ।
घर पर तो खाना खाने में ,मै नखरे खूब बताती थी
और थोड़ा भी ठंड़ा खाना हो ,तो लाख बहाने गाती थी ।
तेरी छुई मुई सी बेटी ,अब पत्थर बन गई है मॉ,
और घर में कुछ ना करने वाली,अब सब कुछ कर रही है मॉ।
                                      घर में जब तू संग रहती थी ,तुझसे हर काम को कहती थी,
लड़ती थी झगड़ती थी और मन मर्जी से सब करती थी ।
जब परिक्षाऐं मेरी आती थी ,मै पढ़ते पढ़ते सो जाती थी ,
 

और रात को फिर हौले से तुम ,मेरी पुस्तक बंद कर जाती थी ।
अब भी पढ़ते पढते मै माँॅ
पुस्तक खोल के सोती हू,
जब नींद खुली मेरी तो फिर मैं, खुद ही पुस्तक बंद कर लेती हूॅ।              
जब तक तेरे साथ थी मै माँ ,तुझको जान पाई थी,
और तू कितनी प्यारी है माँ ,इसको पहचान ना पाई थी,
तुझसे दूर रहकर के मॉ ,तेरे साथ को जाना है,
और तेरे साये का सुख क्या है? अब मैने पहचाना है।



1 comment:

  1. बहुत अच्छी कविता है आपकी... दिल को छू गयी।

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