Wednesday 24 August 2011

मेरा क्या कसूर?

कैसा अजब तूने ,ये खुदा कर दिया,
नन्ही सी जान को ,माँ से जुदा कर दिया ,
    क्या कसूर था ,उस नन्ही सी जान का,
   जो उसे, माँ बिन जीने को, मजबूर कर दिया।
इस जग में उसकी जिंदगी, कितनी मुश्किल बन जाएगी ,
मानो ये जिंदगी उसके लिए ,बंदगी बन जाएगी।
   बिन माँ के वो नन्ही जान कैसे पलेगी,
   तू ही बता,माँ की छाया उस,े कहाँ से मिलेगी?
क्या वो माँ सा दुलार,कोई दूसरा कर पायेगा?
और उसकी माँ की जगह,क्या कोई दूसरा भर पायेगा?
    उस बाप की भी कितनी बेवसी होगी,
   जब वो ही ना होगा, जिसमें उस नन्ही की जान बसी होगी।
  वो ख्वाब जो उसने माँ के साथ मिलकर सजाया था।
  वो ख्वाब ऐसा हकीकत में ऐसा होगा,
  वो कभी सोच भी ना पाया था।
कितनी शिद्दत ये लम्हा, जिंदगी दिखलाती हैं,
बिखर जाता है सब कुछ, जब लम्हा देने वाली ही चली जाती हैं,
 उस नन्ही जान की ,तब क्या जिंदगी होगी ,
 उस अनजान को जब सारी दुनिया कोस रही होगी।
अरे उस नादान की क्या,इसमेकोई रजा हैं,
खुद ही सोचों, उसके लिए इससे बड़ी भी कोई सजा है ।
 बिन माँ के वो कैसे बचपन बिताएगी,
 ये जग कही ऐसा  ना बना दे,
कि समझ आने पर वो अपने होने पर ही पछतायेगी।
        
ऐसे निर्दोष को क्यों दुनिया कोसती रही है
                       क्या वो ये नही जानते
        कि खुदा की मर्जी बिन तो ,पत्ती भी ना हिल सकी है।
तो क्यों नही देती दुनिया,उस नन्ही जान को हौसला,
क्यों नही समझती इसे खुदा का ही एक फैसला।



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