Wednesday 24 August 2011

काश!

   काश! ,एक ऐसा अल्फाज़,
   जो हर शख्स कि ज़ुबा पर है,
   काश,किसी की ख्वाहिशों का ज़रिया,
   तो किसी के गम का फरमान,
   इस शब्द से इंसानियत का गहरा नाता है,
  हर शख्स इसका गुलाम हो जाता है।
       काश!ऐसा हुआ होता,
       और काश! ऐसा ना हुआ होता।
       हर किसी के जज्बातों को बयान करता है,
       कभी खु्रशी का,तो कभी गम का ऐलान करता है,
कभी कभी तो ये ज़हन मे आता है,
कि गर ये काश! ना होता,
तो जिंदगी क्या होती ।
       लोग अपने जज्बात कैसे कहते,
       खुदा से फरियाद का भी, तो यही एक ज़रिया है,
       और काश! कहकर ही तो उससे शिकायत भी होती है ।
गर ये शब्द ना हो तो क्या हो,
शायद,जहां को खुदा से शिकायत ना हो ।
इस काश! ने जिंदगी ही ऐसी बना दी है ,
मानो सारी जिंदगी एक इबादत बना दी है।
अपनी हर बात को खुदा से काश! लगाकर कहते रहते है ,
शायद ,खुदा की इस प्यारी दुनिया से,
इस काश!  के कारण खुश नही रहते हैं।
ये काश! ना होता तो क्या होता,
फिर शायद हर एक बात का,एक ही नज़रिया होता।
     अंकिता जैन

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