बचपन के पलों को यारो,कभी ना भुलाना
याद आता है यारो ,वो बचपन सुहाना।
वो जोर जोर से चीख कर,छत पर बारिश में नहाना
और कागज के टुकड़ो की नाव बनाना।
माँ से छुप कर,घर से बाहर आना
और फिर घर घर जाकर सबको बुलाना।
दोपहर की धूप में मिट्टी ढ़ोकर लाना
फिर उस माटी से छोटे छोटे बर्तन बनाना।
ट्रेन को देखकर खूब हल्ला मचाना।
टिचर को आते देख वहॉ से भाग जाना
बहुत याद आता है यारो, वो बचपन सुहाना।
याद आता है वो बगीचे से जामुन चुराना
पेड़ो पर चिड़िया का घोसला बनाना ।
माली को आते देख उसे चिढ़ाना
बहुत याद आता है,उस माली को सताना।
भोलेपन से सभी रिश्तों को बनाना
और बिना बंधन उन रिश्तों को निभाना।
किसी भी बात को दिल से ना लगाता
कहाँ गया यारो वो मासूम बचपन का जमाना।
बहुत याद आता है वो बचपन सुहाना...वास्तव में...
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