कुछ दिनों से मन में यही सवाल उठ रहें हैं कि क्या यही वो भारत है जिसकी कल्पना हमने की थी, हमारा भारत आजाद और सुरक्षित होगा। क्या यही वह इक्कीसवी सदी है, जिसे नारी सदी कहा जाता है। हाल ही में आये कुछ वाकयो से तो ऐसा नही लगता कि औरते अब कहीं भी सुरक्षित है। अभी तक तो बात शहरों को लेकर दिल्ली और मुम्बई सुरक्षित है या नही या किस हद तक अब तो संत और आश्रमों पर भी सवाल उठ रहें है। तो क्या कहेंगे? दिल्ली के दामिनी और मुम्बई के फोटोग्राफर के मामले को लेकर देश उभरा ही नही था कि अब संत आसाराम बापू नही शायद संत या बापू लगाना उस लड़की का अपमान करने जैसा होगा। आसाराम का यह मामला सामने आ गया है मतलब यह की अब तक लोग घर-द्वार मोह माया से परे होकर किसी आश्रम में जीवन-यापन करना पसंद करते थे, पर अब शायद किसी आश्रम में पनाह लेने के पहले उन्हें सोचना होगा। कहीं उनका विश्वास अंधविश्वास में तो नही तब्दील हो रहा है। कहीं उनके विश्वास के साथ कोई खेल तो नही हो रहा। अब शायद सभी नागरिको को सोचना होगा, किसी संत या आश्रम पर विश्वास कर रहें हैं। उनका यह विश्वास उन्हें सच में तो अंधा नही बना रहा।
जुवेनाइल नाबालिग जुर्म को बढ़ावा तो नही?
दिल्ली रेप केस की पीडि़ता दामिनी ने मौत से लड़ते-लड़ते 16 दिसम्बर को दम तोड़ दिया। पर उसकी ये हालत बनाने वाले दोषियों की सजा के फैसले से खुशी तो बहुत हुयी साथ ही उस वकील पर बहुत गुस्सा भी आया जिसने ऐसा स्टेटमेन्ट दिया। फासी की सजा तो सभी अपराधियों को सुनायी गयी पर नाबालिग को जुवेनाइल की सजा सुनाई गयी। वहीं मुम्बई की फोटोजर्ननिस्ट से दुष्कर्म के सभी आरोपी और बैंगलोर की लाॅ स्टूडेन्ट के दुष्कर्म मामले में एक आरोपी नाबालिग होने के कारण जुवेनाइल की सजा मिलेगी, सिर्फ तीन साल जेल नही सुधारएक्ट कहा जाता है। जहां उन्हें उनके घर से भी ज्यादा सुविधाएं और खाना पीना मुहैया कराया जाता है। क्या उनके इस घिनौने अपराध के लिये सजा वाजिब है। क्या इस घिनौने कृत्य को करते वक्त वो ये भूल गये कि वो नाबालिग है या उन्हें मालूम था कि इस कृत्य की सजा उन्हें ज्यादा नही मिलेगी इसलिये उनकी हिम्मत बढ़ गई? क्या अपराधी के नाबालिग होने से दामिनी और अन्य पीडि़तों का दर्द तकलीफ कम हो गयी? क्या समाज में वो फिर से अपनी वही जिंदगी जी पायेगी। उन्हें वही आत्मविश्वास और इज़्ज़्ात मिल पायेगी। क्या उनके भविष्य से यह दाग कम हो जायेगा। क्या इससे उनका भविष्य ,आज़ादी, खुशी, आत्मविश्वास जो छीना है वह वापस मिलेगा? क्या कुछ प्रतिशत इनकी ये सारी तकलीफें भी कम हो जायेंगी? शायद नही, और शायद नही-इसका जवाब तो सिर्फ नही ही है तो फिर उन अपराधियों को जुवेनाइल की सजा क्यो? क्या आपको नही लगता की उनके लिये भी कोई कठोर सज़ा मिलनी चाहिये जो उन्हें इस घिनौने कृत्य की तकलीफ का अंदाज़ दिला सके कि उन्होंने सिर्फ अपनी हवस के लिये क्या किया है?
जुवेनाइल का कानून सिर्फ हमारे देश में ही सभी जुर्म के लिये एक समाज ही बल्कि बाकी देशों में जुवेनाइल का निर्धारण इस बात से होता है कि उसका अपराध क्या है? उसके अनुसार ही सजा का निर्धारण भी होता है और हमारे देश को भी अब ऐसे ही कानून की आवश्यकता है ताकि जिस जुर्म को अंजाम देने वाले को दंड का खौफ सताये वरना दंड के अभाव में कहीं अपराधियों की संख्या ना बढ़ जाये।
दामिनी रेप केस के बाद आसाराम का जो बयान या शायद हमें उसी वक्त अंदाजा लगा लेना चाहिये कि आसाराम भी कुछ दिन बाद शायद इसी चोले में दिखने वाले हैं।
उस वक़्त उनके इस बयान ने उस लड़की को दुष्कर्म के वक़्त उन आरोपियों को भाई कह देना चाहिये इससे ये हादसा नही होता, और वह लड़की को छोड़ देते और यह घिनौना कृत्य होता ही नही। उस वक़्त भी उनके इस बयान ने सारे देश में हलचल मचा दी थी कि इतने संगीन हादसे पर इतने बड़े व्यक्ति का यह किस तरह का बेतुका बयान है और जब खुद इस घिनौने कृत्य के आरोपो में घिरे तो उनका यही कथन था कि लड़की मेरी पोती जैसी है, मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हंू। पता नही कि वह बालिका क्यों ऐसे आरोप मुझ पर लगा रही है। आसाराम के विश्वास इतने बड़े जुर्म को करने के बाद भी तो कितने विश्वास के साथ अपने आप को निर्दोष बता रहे थे और अब जब उनके सारे जुर्म साबित हो ही चुके है तो शायद उनके पास देने के लिये और बेतुके बयान नही है और अब तो वो कुछ ना ही कहे तो उनके लिये बेहतर होगा क्योकि अब तक देश भर से उनके समर्थक उनके साथ थे पर अब तो शायद सच जानकर उनके काफी समर्थक अब उनके समर्थक नही रहेंगें।
तो बापू जी अब ज़रा सोच समझकर अपने सदवाक्य कहीयेगा, कहीं वो आप पर भारी न पड़ जाये।