Tuesday, 1 October 2013

कैसा बदलता भारत? क्या यही है बदलता भारत?


कुछ दिनों से मन में यही सवाल उठ रहें हैं कि क्या यही वो भारत है जिसकी कल्पना हमने की थी, हमारा भारत आजाद और सुरक्षित होगा। क्या यही वह इक्कीसवी सदी है, जिसे नारी सदी कहा जाता है। हाल ही में आये कुछ वाकयो से तो ऐसा नही लगता कि औरते अब कहीं भी सुरक्षित है। अभी तक तो बात शहरों को लेकर दिल्ली और मुम्बई सुरक्षित है या नही या किस हद तक अब तो संत और आश्रमों पर भी सवाल उठ रहें है। तो क्या कहेंगे? दिल्ली के दामिनी और मुम्बई के फोटोग्राफर के मामले को लेकर देश उभरा ही नही था कि अब संत आसाराम बापू नही शायद संत या बापू लगाना उस लड़की का अपमान करने जैसा होगा। आसाराम का यह मामला सामने आ गया है मतलब यह की अब तक लोग घर-द्वार मोह माया से परे होकर किसी आश्रम में जीवन-यापन करना पसंद करते थे, पर अब शायद किसी आश्रम में पनाह लेने के पहले उन्हें सोचना होगा। कहीं उनका विश्वास अंधविश्वास में तो नही तब्दील हो रहा है। कहीं उनके विश्वास के साथ कोई खेल तो नही हो रहा। अब शायद सभी नागरिको को सोचना होगा, किसी संत या आश्रम पर विश्वास कर रहें हैं। उनका यह विश्वास उन्हें सच में तो अंधा नही बना रहा।
जुवेनाइल नाबालिग जुर्म को बढ़ावा तो नही?
दिल्ली रेप केस की पीडि़ता दामिनी ने मौत से लड़ते-लड़ते 16 दिसम्बर को दम तोड़ दिया। पर उसकी ये हालत बनाने वाले दोषियों की सजा के फैसले से खुशी तो बहुत हुयी साथ ही उस वकील पर बहुत गुस्सा भी आया जिसने ऐसा स्टेटमेन्ट दिया। फासी की सजा तो सभी अपराधियों को सुनायी गयी पर नाबालिग को जुवेनाइल की सजा सुनाई गयी। वहीं मुम्बई की फोटोजर्ननिस्ट से दुष्कर्म के सभी आरोपी और बैंगलोर की लाॅ स्टूडेन्ट के दुष्कर्म मामले में एक आरोपी नाबालिग होने के कारण जुवेनाइल की सजा मिलेगी, सिर्फ तीन साल जेल नही सुधारएक्ट कहा जाता है। जहां उन्हें उनके घर से भी ज्यादा सुविधाएं और खाना पीना मुहैया कराया जाता है। क्या उनके इस घिनौने अपराध के लिये सजा वाजिब है। क्या इस घिनौने कृत्य को करते वक्त वो ये भूल गये कि वो नाबालिग है या उन्हें मालूम था कि इस कृत्य की सजा उन्हें ज्यादा नही मिलेगी इसलिये उनकी हिम्मत बढ़ गई? क्या अपराधी के नाबालिग होने से दामिनी और अन्य पीडि़तों का दर्द तकलीफ कम हो गयी? क्या समाज में वो फिर से अपनी वही जिंदगी जी पायेगी। उन्हें वही आत्मविश्वास और इज़्ज़्ात मिल पायेगी। क्या उनके भविष्य से यह दाग कम हो जायेगा। क्या इससे उनका भविष्य ,आज़ादी, खुशी, आत्मविश्वास जो छीना है वह वापस मिलेगा? क्या कुछ प्रतिशत इनकी ये सारी तकलीफें भी कम हो जायेंगी? शायद नही, और शायद नही-इसका जवाब तो सिर्फ नही ही है तो फिर उन अपराधियों को जुवेनाइल की सजा क्यो? क्या आपको नही लगता की उनके लिये भी कोई कठोर सज़ा मिलनी चाहिये जो उन्हें इस घिनौने कृत्य की तकलीफ का अंदाज़ दिला सके कि उन्होंने सिर्फ अपनी हवस के लिये क्या किया है?
जुवेनाइल का कानून सिर्फ हमारे देश में ही सभी जुर्म के लिये एक समाज ही बल्कि बाकी देशों में जुवेनाइल का निर्धारण इस बात से होता है कि उसका अपराध क्या है? उसके अनुसार ही सजा का निर्धारण भी होता है और हमारे देश को भी अब ऐसे ही कानून की आवश्यकता है ताकि जिस जुर्म को अंजाम देने वाले को दंड का खौफ सताये वरना दंड के अभाव में कहीं अपराधियों की संख्या ना बढ़ जाये।
दामिनी रेप केस के बाद आसाराम का जो बयान या शायद हमें उसी वक्त अंदाजा लगा लेना चाहिये कि आसाराम भी कुछ दिन बाद शायद इसी चोले में दिखने वाले हैं।
उस वक़्त उनके इस बयान ने उस लड़की को दुष्कर्म के वक़्त उन आरोपियों को भाई कह देना चाहिये इससे ये हादसा नही होता, और वह लड़की को छोड़ देते और यह घिनौना कृत्य होता ही नही। उस वक़्त भी उनके इस बयान ने सारे देश में हलचल मचा दी थी कि इतने संगीन हादसे पर इतने बड़े व्यक्ति का यह किस तरह का बेतुका बयान है और जब खुद इस घिनौने कृत्य के आरोपो में घिरे तो उनका यही कथन था कि लड़की मेरी पोती जैसी है, मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता हंू। पता नही कि वह बालिका क्यों ऐसे आरोप मुझ पर लगा रही है। आसाराम के विश्वास इतने बड़े जुर्म को करने के बाद भी तो कितने विश्वास के साथ अपने आप को निर्दोष बता रहे थे और अब जब उनके सारे जुर्म साबित हो ही चुके है तो शायद उनके पास देने के लिये और बेतुके बयान नही है और अब तो वो कुछ ना ही कहे तो उनके लिये बेहतर होगा  क्योकि अब तक देश भर से उनके समर्थक उनके साथ थे पर अब तो शायद सच जानकर उनके काफी समर्थक अब उनके समर्थक नही रहेंगें।
तो बापू जी अब ज़रा सोच समझकर अपने सदवाक्य कहीयेगा, कहीं वो आप पर भारी न पड़ जाये।

Wednesday, 9 May 2012


हम चाहकर भी,हमसे दिख नही पाते,
जीते तो है मगर, खुद सा जी नही पाते।
 क्या दिखना है, वही दिखाते है
और क्या है हम, ये खुद के अंदर छुपा लेते हैं।
खुल के जीने की चाह भी है अरमान भी है,
और इस दुनिया से परे, खुद का गुमान भी हैं।
पर इस दुनिया के लिए, खुद को खोते जा रहे है,
दुनिया के धागे मे ,खुद को मोतियांे सा पिरोते जा रहे है।
जी तो चाहता है,इसे धागें से आजाद होने को ,
उपने में सिमट कर, खुद में जीने केा।
ना जाने कब इस बंधन को, मै तोड़ पाऊंगी।
दुनिया केl भूल कर, खुद में आजाद रहकर जी पाऊंगी?

Monday, 26 March 2012

खुशियां



खुशियां आती है, हलचल मचाती है,
दो पल पास रहकर, दूर चली जाती है।
मैं चाहती हू हर पल उसका साथ,
पर हमेशा मुझे वो कर जाती है उदास।
 जब तक रहती है ये मेरे साथ , दे जाती मुझे कुछ नया सा अहसास,
होंठो की पंखुडि़या खुल जाती, और की चमक लौट आती है।
चेहरे की रंगत कुछ अलग ही नजर आती है,
और दिल में उमंगो की बरसात सी हो जाती है।
पर क्यूं मुझ संग ये आॅख मिचैली सी खेल रही है,

कुछ पल सामने रहकर जाने कहां छिप रही है।
ढूंढती फिरती हू इन्हे में , हर कदम हर राह पे ,
कुछ पल के लिए मिलती ,एक अनजानी पनाह में।
जाने क्यूं मुझसे ये रूठी है,
अपनी जिद मेंु ऐसे ऐठी है।
बहुत हो गयी तेरी जिद और तेरी दूरी,
आ जा पास ,तू समझ ले मेरी भी मजबूरी ।
ले मै हारी और हो गई तेरी जीत,
अब लौट भी ऐ खुशी बनकर मेंरी मीत।


Thursday, 8 March 2012

काश ये जिंदगी फूलो सी बन जाती,



काश ये जिंदगी फूलो सी बन जाती,
दूसरों को खुश्बू देकर खुद महक जाती।
अपने लिए ना कोई चाह ,ना कोई अरमान,
             दूसरों के नित होने में ही है, उसका  स्वाभिमान,                     
 
 
काश हम भी एक फूल की तरह जाी पाते।
निज का स्वार्थ तज, दूसरों के हित कर पाते,
काटो के बीच रहकर भी ,मखमल सा बन पाते।
इन फूलों की क्या जिंदगानी होती है,
उनके हर एक जर्रे की उनसे ,बेगानी होती है।
तितलियों के लिए रंग, भौरो के लिए खुश्बू ,
अर्थी हो या भगवान की मूरत, दोनों के नित है एक ही सूरत।

किसी भी बात पर गुमान ना अफसोस उसे ,
ना ही किसी से खुशी और ना किसी से रोष उसे।  
                         
 
                                                   काश हम भी इस फूल की तरह, निष्छल रह पाते
सभी परिस्थितियों में उनसा ,सम रह पातें।


Thursday, 2 February 2012

तेरी याद

आज तेरी याद आ रही है,
तेरी अधूरी बात तड़पा रही हैं।
एक बार तो तूने दिल की बात कही होती,
तो आज तेरी कमी यू ना हुई होती।
क्या वजह हो गयी तेरे इतने दूर जाने कीं,
इतने दूर की कभी लौट के ना आने की।
तेरी बात न सुन पाने की मुझसे भूल हुई,
क्या यही थी वजह जो तू  मुझसे दूर हुई।
त ू तन्हा करके मुझे चली गई,
कितने सवाल मेरे मन मे छोड गई।
इन सवालो के जवाब मैं कहाॅ से पाऊ।
अब तुझे फिर से पाने के लिए अब मै क्या कर जाऊॅ,
अब तुझे फिर से पाने के लिए अब मंै क्या कर जाऊॅ।
आज दिल तुझे आवाज लगा रहा है,
तेरे दूर होने पर भी तुझे करीब पा रहा है।
तू इतनी दूर चली गई है,
ये ना मान पा रहा है।
दिल कहता है तू कही है  लौटकर जरूर आयेगी,
मेरे सारे सवालों के जवाब दे जायेगी।

Tuesday, 31 January 2012

जिदंगी के सफर में चले जा रहे है,

जिदंगी के सफर  में चले जा रहे है,
रास्ते में ना जाने कितने मुका आ रहे है,
कुछ जाने कुछ अनजान से मुकाम है,
और सफर की मंजिल से हम अब तक अनजान हैंे।
 कितने मोड आये,कितनी राहे बदल गयी,
 कितनी मंजिल आयी और आकर निकल गयी।
हम अब तक बस,सफर तय किये जा रहे हैं,
पर मंजिल का निशा अब भी हम कहा पा रहे है?
राहों पे चलते हुऐ मंजिले बदलती गयी,
हर राह पे एक नयी मंजिल बनती गयी।
                                                      तमन्ना