काश ये जिदंगी सी फूलों सी बन पाती,
दूसरों को खुश्बू देकर महक पाती।
अपने लिए ना कोई चाह,ना कोई अरमान ,
दूसरों के नित होता है,उसका स्वाभिमान।
काश हम भी एक फूल की तरह जी पाते,
निज का स्वार्थ तज,दूसरों का हित कर पाते।
इन फूलों की क्या भी क्या जिंदगानी होती है,
हर एक जर्रा भी उनका उनसे बेगानी होती है।
तितलियों के लिए रंग ,भौरों को रस,
अर्थी हो या भगवान की मूरत ,दोनों के लिए है उसकी एक ही सूरत
किसी भी बात पर ना गुमान ना अभिमान,
ना ही कोई खुशी ना ही रोष है
सब कुछ सह कर भी रहता खामोश।
काश हम ही इन फूलों की तरह रह पाते,
हर जगह बस अपने प्यार की खुश्बू बिखेरते जाते।
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